मंगलवार, 26 जनवरी 2016

इक लडकी






गेंहूँ के दाने सी इक लडकी
सुनहरी, चमकती, खनकती।
अपने नसीब से अनजान,
इठलाती, बलखाती, खिलखिलाती।

जानती कहाँ है पिसेगी वो,
पानी में भीगेगी, पिटेगी, मसली जायेगी
सिंकेगी जिंदगी के चूल्हे पर,
दुखों की आग में जलेगी,
परोसी जायेगी किसी के आगे,
फिर भी मुस्कुरायेगी, चाहे म्लान ही क्यूं न हो मुस्कान।

या फिर गाड दी जायेगी जमीन में,
लेकिन उसकी जिजिविषा देखो,
फिर उगेगी, लहरायेगी, खिलखिलायेगी, लौटायेगी तुम्हें सौ गुना।

ये लडकी गेंहूँ के दाने सी।

चित्र गूगल से साभार।

गणतंत्र दिवस की मंगल कामनाएँ।

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