सोमवार, 3 नवंबर 2014

जल्दी आना





मंदिर के घंटियों की टुन टुन,
तुम्हारे भजन की गुन गुन
बना देती है दिन मेरा।

चाय के कप से उठती भाप
ठंड में उसका सुखद ताप
अद्भुत अहसास-ए-सवेरा।

गर्म नाश्ता ही सर्दी में
तुम्हारे नियम हिदायतें
मै बस नही तोडता।

शाम के चाय की प्याली
तुम्हारी ये अदा निराली
भाती है खूब मुझे।

जाना है तुम्हें पिता घर
मन को खुशी से भर
क्या अब होगा मेरा।

वापस जब तुम आओगी
घर को ऐसा ही पाओगी
तुमसे वादा है मेरा

वहां मन को ना लगाना
मेरी याद ना भुलाना
बस जल्दी आना।


Picture from Google with thanks.



कोई टिप्पणी नहीं: